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तिरुपति बालाजी मंदिर के रहस्य _ Tirupati Balaji Most Mysterious Temples of India_The World's Mystery_transcript

[संगीत] तिरुपति बालाजी मंदिर से जुड़ी रहस्यमय बातें भारत में बहुत से चमत्कारिक और रहस्यमय मंदिर हैं जिसमें दक्षिण भारत में स्थित तिरुपति बालाजी का मंदिर भी शामिल है भारत समेत पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है यह मंदिर भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण है तिरुपति बालाजी मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमला पर्वत पर स्थित है और यह भारत के मुख्य तीर्थ स्थलों में से एक है तिरुपति बालाजी का वास्तविक नाम श्री वेंकटेश्वर स्वामी है जो स्वयं भगवान विष्णु हैं मान्यताओं के मुताबिक श्री वेंकटेश्वर अपनी पत्नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं कलयुग के प्रारंभ होने पर आदि वराह वेंकटाकृष्ण जी को पुनः लाने के लिए कहा नारद एक दिन गंगा के तट पर गए जहां पर ऋषि इस बात को लेकर भ्रम में थे कि हमारे यज्ञ का फल त्रिदेव में से किसे मिलेगा नारद जी ने उनकी शंका के समाधान हेतु भृगु को यह कार्य सौंपा उन्होंने तीनों देवों की परीक्षा लेने का सोचा महर्षि भृगु जो कि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं उनको इस कार्य के लिए चुना गया महर्षि भृगु सर्वप्रथम ब्रह्मलोक पहुंचे ना तो उन्होंने ब्रह्मा जी की स्तुति की ना ही उन्हें प्रणाम किया यह देख ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए और क्रोध की अधिकता से उनका मुख लाल हो गया परंतु यह सोचकर कि भृगु जी उन्हीं के पुत्र हैं उन्होंने अपने क्रोध को अपने विवेक से दबा लिया और भृगु ऋषि वहां से चले गए वहां से महर्षि भृगु ने कैलाश की ओर प्रस्थान किया देवाधि देव महादेव भृगु को आता देख प्रसन्न होकर अपने आसन से खड़े हुए और उनको गले से लगाने के लिए भुजा फैला दी किंतु भृगु तो उनकी परीक्षा लेने आए थे भृगु ने उनका आलिंगन अस्वीकार दिया और कहा हे शिव आप हमेशा ही धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं दुष्ट पापियों को आप तो सुलभता से वरदान दे देते हैं परंतु उसके बाद वह पूरी सृष्टि को परेशान कर देते हैं इसलिए मैं आपका आलिंगन कदापि नहीं करूंगा उनकी बात सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो उठे उन्होंने त्रिशूल उठाकर भृगु को मारना चाहा किंतु माता सती बीच में आ गई जिससे भगवान शिव जी का क्रोध शांत हो गया इसके बाद भृगु मुनि कुंठ लोग गए उस समय भगवान विष्णु आराम कर रहे थे भृगु ऋषि ने पहुंचते ही उनकी छाती पर प्रहार किया श्री हरि विष्णु शीघ्र ही अपने आसन से उठे और उन्हें प्रणाम करके उनके चरण दबाते हुए बोले महाराज आपके पैर पर चोट तो नहीं लगी कृपया इस सिंहासन पर बैठिए ऋषि श्रेष्ठ मुझे आपके यहां पधारने का पता नहीं था इसी कारण वश मैं आपका स्वागत ना कर पाया आपके चरणों का स्पर्श तीर्थों को पवित्र करने वाला है और आपके चरणों के स्पर्श से आज मैं धन्य हो गया भगवान विष्णु का यह प्रेम व्यवहार देखकर महर्षि भृगु की आंखों से आंसू बहने लगे यह देखकर ऋषि भृगु ने सभी ऋषियों को उत्तर दिया कि उनके यज्ञ का फल हमेशा भगवान विष्णु को समर्पित होगा परंतु श्री हरि विष्णु की छाती पर प्रहार करने के कारण माता लक्ष्मी क्रोधित हो गई उन्हें अपने पति का अपमान सहन नहीं हुआ और वे चाहती थी कि भगवान विष्णु ऋषि भृगु को दंडित करें परंतु ऐसा नहीं हुआ परिणाम स्वरूप उन्होंने वैकुंठ को छोड़ दिया और तपस्या करने के लिए धरती पर आ गई और करवीरा पुरा में ध्यान करना शुरू कर दिया इधर विष्णु जी इस बात से दुखी थे कि माता लक्ष्मी उन्हें छोड़कर चली गई कुछ समय बाद वे भी धरती पर आकर माता लक्ष्मी को ढूंढने लगे पौराणिक कथाओं के अनुसार पद्मावती देवी इस क्षेत्र के शासक आकाश राजा की पुत्री अलमेलु थी जिनका विवाह वेंकटेश्वर से हुआ था कहा यह भी जाता है कि देवी लक्ष्मी ने भगवान वेंकटेश्वर को लाल कमल पुष्प पर अलाम मेलू मंग पुरम में 12 वर्षों तक उनके घोर तप के बाद दर्शन दिए थे जंगल और पहाड़ियों पर भटकने के बाद भी वह माता को खोज नहीं पाए आखिर परेशान होकर विष्णु जी वेंकटागिरी के आश्रय में विश्राम करने लगे यह देखकर ब्रह्मा जी ने उनकी सहायता करने का फैसला किया वे गाय और बछड़े का रूप धारण कर माता लक्ष्मी के पास गए देवी लक्ष्मी ने उन्हें देखा और उस वक्त के सत्ता श शासक चोल राजा को उन्हें सौंप दिया राजा ने उसे चरवाहे को सौंप दिया परंतु वह गाय सिर्फ विष्णु जी के रूप श्री निवास को ही दूध देती थी जिस कारण चरवाहे ने उस गाय को मारने का प्रयास किया तब श्री निवास ने चरवाहे पर हमला करके गाय को बचाया और क्रोधित होकर उन्होंने चोल राजा को एक राक्षस के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया राजा ने दया की प्रार्थना की तब श्रीनिवास ने कहा कि राजा को दया तब मिलेगी जब वह अपनी बेटी पद्मावती का विवाह मुझसे कराएगा जब यह बात देवी लक्ष्मी पद्मावती को पता चली तो वे वहां आई और तब उन्होंने श्री हरि को पहचान लिया वेंकटेश्वर और पद्मावती दोनों एक दूसरे से मिले और देवताओं ने राजा से अपनी बेटी की शादी भगवान से करने के लिए कहा माता लक्ष्मी से शादी करने के लिए भगवान विष्णु ने कुबेर जी से कर्ज लिया कर्ज लेते समय भगवान विष्णु ने कहा था कि कलयुग के अंत तक वह अपना सारा कर्ज ब्याज समेत चुका देंगे इस कर्ज से भगवान विष्णु के वेंकटेश रूप और देवी लक्ष्मी के अंश पद्मावती ने विवाह किया इसी मान्यता की वजह से श्रद्धालु आज भी भगवान विष्णु के अवतार तिरुपति बालाजी को बड़ी मात्रा में सोना चांदी हीरे मोती और गहने भेंट करते हैं ताकि भगवान कर्ज मुक्त हो जाए तिरुपति मंदिर में बाल दान करने के पीछे की क्या वजह बाल दान देने के पीछे का कारण भी यही माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर कुबेर से लिए गए रण को चुकाते हैं भगवान वेंकटेश्वर का पद्मावती से विवाह हुआ था तब एक परंपरा के अनुसार वर को शादी से पहले कन्या के परिवार को एक तरह का शुल्क देना होता था लेकिन भगवान वेंकटेश्वर यह शुल्क देने में असमर्थ थे इसलिए उन्होंने कुबेर देवता से रण लेकर पद्मावती से विवाह किया और वचन दिया कि कलयुग के अंत तक वे कुबेर का सारा रण चुका देंगे उन्होंने देवी लक्ष्मी की ओर से भी वचन देते हुए कहा कि जो भी भक्त उनका रण लौटाने में उनकी मदद करेंगे देवी लक्ष्मी उन्हें उसका 10 गुना ज्यादा धन देंगी इस कारण तिरुपति जाने वाले विष्णु भगवान पर आस्था रखने वाले भक्त बालों का दान कर भगवान विष्णु का रण चुकाने में उनकी मदद करते हैं यह भी कहा जाता है कि कलयुग के कष्ट से लोगों को बचाने के लिए उन्होंने यह अवतार लिया था इसीलिए भगवान के इस रूप में मां लक्ष्मी भी समाहित हैं इसीलिए यहां बालाजी को स्त्री और पुरुष दोनों के वस्त्र पहनाने की परंपरा है बालाजी को प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर साड़ी से सजाया जाता है मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से भगवान वेंकटेश्वर के सामने प्रार्थना करते हैं उनकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं भक्त अपनी श्रद्धा के मुताबिक यहां आकर तिरुपति मंदिर में अपने बाल दान करते हैं ऐसा कहा जाता है भगवान वेंकटेश्वर स्वामी जी की मूर्ति पर लगे बाल असली हैं यह बाल कभी भी उलझते नहीं हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं ऐसा कहा जाता है कि यहां भगवान खुद विराजमान है जब मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करेंगे तो ऐसा लगेगा कि भगवान श्री वेंकटेश्वर की मूर्ति गर्भगृह के मध्य में है लेकिन आप जैसे ही गर्भगृह के बाहर आएंगे तो चौक जाएंगे क्योंकि बाहर आकर ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान की प्रतिमा दाहिनी तरफ विराजमान है अब यह सिर्फ भ्रम है या कोई भगवान का चमत्कार इसका पता आज तक कोई नहीं लगा पाया है तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा अलौकिक है यह विशेष पत्थर से बनी है यह प्रतिमा इतनी सुंदर और जीवंत है कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे भगवान विष्णु स्वयं यहां विराजमान है प्रतिमा को पसीना आता है पसीने की बूंदे देखी भी जा सकती हैं इसलिए मंदिर में तापमान कम रखा जाता है श्री वेंकटेश्वर स्वामी के मंदिर से 23 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है ऐसा कहा जाता है कि यहां गांव वालों के अलावा कोई बाहरी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता इस गांव के लोग बहुत ही अनुशासित हैं और नियमों का पालन कर जीवन व्यतीत करते हैं मंदिर में चढ़ाया जाने वाला पदार्थ जैसे कि फल फूल दही घी दूध मक्खन आदि इसी गांव से आते हैं गुरुवार को भगवान वेंकटेश्वर को चंदन का लेप लगाया जाता है जिसके बाद में अद्भुत रहस्य सामने आता है श्रृंगार हटाकर स्नान कराकर चंदन का लेप लगाया जाता है और जब इस लेप को हटाया जाता है तो भगवान वेंकटेश्वर के हृदय में माता लक्ष्मी जी की आकृति दिखाई देती है यह भी एक रहस्य है श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में एक दिया हमेशा जलता रहता है और सबसे चौकाने वाली बात यह है कि इस दीपक में कभी भी तेल या घी नहीं डाला जाता और दीपक को सबसे पहले किसने और कब प्रज्वलित किया था किसी को भी इस रहस्य का पता नहीं है भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा पर पचाई कपूर लगाया जाता है कहा जाता है कि यह कपूर किसी भी पत्थर पर लगाया जाए तो पत्थर में कुछ समय बाद दरारें पड़ जाती हैं लेकिन भगवान बालाजी की प्रतिमा पर पचाई कपूर का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है मंदिर में मुख्य द्वार के दरवाजे पर दाईं तरफ एक छड़ी है इस छड़ी के बारे में मान्यता है कि बाल्यावस्था में इस छड़ी से इनकी मा मा ने भगवान वेंकटेश्वर की पिटाई की थी इस कारण उनकी ठुड्डी पर चोट लग गई थी इस कारण वश तब से आज तक उनकी ठुड्डी पर शुक्रवार को चंदन का लेप लगाया जाता है ताकि उनका घाव भर जाए मूर्ति के भीतर से आती है रहस्यमय आवाज कहते हैं कि भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा पर कान लगाकर सुने तो भीतर से समुद्र की लहरों जैसी ध्वनि सुनाई देती है यह आवाज कैसे और किसकी आती है यह रहस्य अभी तक बरकरार कर है

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