हिंदू धर्म कई रहस्यों से भरा हुआ है
जितना जानने की कोशिश करें उतना ही कम है
हिंदू पुराणों में उल्लेख है कि सृष्टि की
रचना परमपिता ब्रह्मा द्वारा की गई है
कथाओं के अनुसार संसार के जीव जंतु पेड़
पौधे नर नारी सभी की रचना भगवान ब्रह्मा
ने की है लेकिन आज हम जहां भी देखते हैं
वहां तस्वीरों में ब्रह्मदेव के चार मुख
ही दिखाए जाते हैं लेकिन क्या आप जानते
हैं कि ब्रह्मदेव का पांचवा सिर कहां गया
आइए जानते हैं श्री हरि विष्णु शेष शैया
पर योग निद्रा में लीन थे उनकी नाभि से एक
विशाल डंठल वाला कमल खिला 14 पंखुड़ियों
वाले उस दिव्य कमल पुष्प पर आसन लगाए
ब्रह्मा प्रकट हुए ब्रह्मा ने कोतुहल में
अपने उद्गम का केंद्र खोजा परंतु उन्हें
कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा हर ओर शून्य ही
दिखा उद्गम केंद्र की खोज करते ब्र ने कमल
डंठल के भीतर प्रवेश किया वह उसकी गहराई
में समाते चले गए लेकिन उन्हें उसका कोई
ओर छोर नहीं मिला ब्रह्मा वापस कमल पर लौट
आए उन्हें जिज्ञासा हुई कि वह कौन है कहां
से उत्पन्न हुए उनके उत्पन्न होने का
उद्देश्य क्या है इन्हीं विचारों में वह
ध्यान लीन हुए उन्हें अपने भीतर एक शब्द
सुनाई दिया तपस तपस ब्रह्मा ने 100 वर्षों
का ध्यान लगाया ब्रह्मा को भगवान विष्णु
की प्रेरणा ध्वनि सुनाई दी समय बर्बाद ना
करो सृष्टि की रचना के लिए तुम्हारी
उत्पत्ति हुई है इसलिए शीघ्र ही अपना
कार्य आरंभ करो ब्रह्मा ने अपने शरीर से
कई रचनाएं की लेकिन उन्हें अपनी रचना पर
संतोष ना हुआ पितामह ब्रह्मा ने अनेक
लोकों की रचना करने की इच्छा से घोर
तपस्या की उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान
विष्णु ने तप अर्थ वाले सन नाम से युक्त
होकर सनक सनन सनातन और सनत कुमार नाम के
चार मुनियों के रूप में अवतार
लिया यह चारों प्राकट्य काल से ही मोक्ष
मार्ग परायण ध्यान में तल्लीन रहने वाले
यह भगवान विष्णु के सर्वप्रथम अवतार माने
जाते हैं इन चारों कुमारों ने संतान पैदा
करने से यह कहते हुए मना कर दिया कि हम
बालक ही रहेंगे सन कादी नाम से विख्यात
चारों मुनि निवृत्ति के मार्ग पर चले गए
ब्रह्मा ने उन्हें रोकने का प्रयास किया
किंतु वे नहीं रुके यह सभी सर्वदा पाच
वर्ष आयु के ही रहे ना कभी जवान हुए ना
बूढ़े चार भाई एक साथ ही रहते हैं और
ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं
ब्रह्मा क्रोधित हुए तो उनकी भौहों से एक
बालक निकला वह बालक जन्म लेते ही रोने लगा
इसीलिए उसका नाम रुद्र हुआ ब्रह्मा ने
विष्णु जी की शक्ति से 10 तेजस्वी पुत्रों
को जन्म दिया जिन्हें मानस पुत्र कहा जाता
है उनके नाम नाम है अत्रि अंग्रेस
पुलस्त्य मरीचि पुल क्रतु भृगु वशिष्ठ
दक्ष और नारद हैं उनके मुख से पुत्री
वागदेवी की उत्पत्ति हुई सृष्टि की वृद्धि
के लिए ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो
भागों में बांट लिया जिनके नाम का और या
काया हुए उन्हीं दो भागों में से एक से
पुरुष तथा दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति
हुई पुरुष का नाम स्वयंभू मनु और स्त्री
का नाम शतरूपा था इन्हीं प्रथम पुरुष और
प्रथम स्त्री की संतानों से संसार के
समस्त जनों की उत्पत्ति हुई मनु की संतान
होने के कारण वे मानव कहलाए मनु और शतरूपा
की संतानों को रहने के लिए श्री हरि ने
वराह रूप धारण कर धरती का उद्धार किया
कथाओं में सारी सृष्टि जीव जंतु पेड़ पौधे
नर नारी सभी भगवान ब्रह्मा द्वारा रचित
बताए गए हैं ऐसा माना जाता है कि भगवान
ब्रह्मा के चार सिर है जो चारों वेदों के
प्रतीक हैं ब्रह्मदेव का एक सिर और हुआ
करता था मतलब उनके कुल पांच सिर थे कथाओं
में उल्लेख मिलता है कि जब ब्रह्मदेव ने
सारी सृष्टि की रचना कर ली तब सृष्टि में
मानव विकास के लिए उन्होंने एक बेहद सुंदर
स्त्री को बनाया जिसका नाम सतरूपा था
परंतु वे इतनी सुंदर थी कि ब्रह्मदेव उनको
देखते ही उन पर मोहित हो गए देवी सतरूपा
वैसे तो ब्रह्मा की थी ब्रह्मा जी अपने
द्वारा उत्पन्न शतरूपा के प्रति आकृष्ट हो
गए तथा उन्हें टकटकी बांधकर निहारने लगे
शतरूपा ने ब्रह्मा की दृष्टि से बचने की
कोशिश की तब वे ऊपर की तरफ दौड़ने लगी तो
ब्रह्मा जी ने अपना एक सिर ऊपर की ओर
विकसित कर दिया देवी सतरूपा उनसे बचने के
लिए हर दिशा की तरफ जाने लगी वह देवी
सतरूपा को पाने के लिए आगे बढ़ रहे थे तब
वह हर दिशा में जाकर उनसे ब ने लगी लेकिन
ब्रह्मदेव अपने पांचों सिर से हर तरफ से
देवी सतरूपा को देखना नहीं छोड़ा देवी
सतरूपा की ब्रह्मा से बचने की हर कोशिश
नाकाम साबित हो गई सतरूपा ब्रह्म देव की
नजरों से नहीं बच पाई भगवान शिव जी
ब्रह्मदेव की यह सब हरकतें देख रहे थे
भगवान शिव जी की दृष्टि में सतरूपा
ब्रह्मा की पुत्री थी इसीलिए उन्हें यह
घोर पाप लगा इससे क्रोधित होकर
भगवान शिव जी ने अपने एक गण भैरव को प्रकट
किया और भगवान भैरव ने ब्रह्मदेव का
पांचवा सिर काट दिया ताकि सतरूपा को उनकी
कुदृष्टि से बचाया जा सके जब ब्रह्मा का
पांचवा सिर कट गया तब उन्हें होश आया और
उन्हें अपनी गलती का एहसास
हुआ
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