MAHABHARAT _ Why Did Shakuni Destroy The Kauravas_ _ शकुनि क्यों करना चाहता था कौरवों का सर्वनाश __transcript
[संगीत]
शकुनी गंधार साम्राज्य का राजा था यह
स्थान आज के अफगानिस्तान में है वह
हस्तिनापुर के महाराज कौरवों के पिता
धृतराष्ट्र का साला था और कौरवों का मामा
दुर्योधन की कुटिल नीतियों के पीछे शकुनी
का हाथ माना जाता है और वह कुरुक्षेत्र के
युद्ध के लिए दोषियों में प्रमुख माना
जाता है उसने कई बार पांडवों के साथ छल
किया और अपने भांजे दुर्योधन को पांडवों
के प्रति कुटिल चालें चलने के लिए साया
शकुनी का जन्म गंधार के सम्राट सुबल तथा
साम्राज्य
सुदर्मानी की बहन गांधारी का विवाह
धृतराष्ट्र से हुआ था शकुनी की कुरुवंश के
प्रति घृणा का कारण यह था कि हस्तिनापुर
के सेनापति भीष्म एक बार धृतराष्ट्र के
लिए गांधारी का हाथ मांगने गंधार गए तब
गांधारी के पिता सुबल ने यह बात स्वीकार
कर ली लेकिन उस समय उन्हें यह पता नहीं था
कि धृतराष्ट्र जन्मांध है इसका शकुनी ने
ने भी विरोध किया लेकिन गांधारी अब तक
धृतराष्ट्र को अपना पति मान चुकी थी इसलिए
शकुनी ने उस दिन यह प्रण लिया कि वह समूचे
कुरुवंश के सर्वनाश का कारण
बनेगा शकुनी के छल कपट से कौरवों और
पांडवों में वैर की आग प्रज्वलित हो उठी
दुर्योधन बड़ी खोटी बुद्धि का मनुष्य था
उसने शकुनी के कहने पर पांडवों को बचपन
में कई बार मारने का प्रयत्न किया
युवावस्था में आकर जब गुणों में उससे अधिक
श्रेष्ठ युधिष्ठिर को युवराज बना दिया गया
तो शकुनी ने
लाक्षा करर उन्हें जलाने का प्रयत्न किया
किंतु विदुर की सहायता से पांचों पांडव
अपनी माता के साथ उस जलते हुए घर से बाहर
निकल गए अपने उत्तम गुणों के कारण
युधिष्ठिर हस्तिनापुर के प्रजा जनों में
अत्यंत लोकप्रिय हो गए उनके गुणों तथा
लोकप्रियता को देखते हुए भीष्म पितामह ने
धृतराष्ट्र से युधिष्ठिर के राज्याभिषेक
कर देने के लिए कहा दुर्योधन नहीं चाहता
था कि युधिष्ठिर राजा बने उसने अपने पिता
धृतराष्ट्र से कहा पिताजी यदि एक बार
युधिष्ठिर को राज्य सिंहासन प्राप्त हो
गया तो यह राज्य सदा के लिए पांडवों के
वंश का हो जाएगा और हम कौरवों को उनका
सेवक बनकर रहना पड़ेगा इस पर धृतराष्ट्र
बोले वत्स दुर्योधन युधिष्ठिर हमारे कुल
के संतानों में सबसे बड़ा है इसलिए इस
राज्य पर उसी का अधिकार है फिर भी तथा
प्रजा जन भी उसी को राजा बनाना चाहते हैं
हम इस विषय में कुछ भी नहीं कर सकते
धृतराष्ट्र के वचनों को सुनकर दुर्योधन ने
कहा पिताजी मैंने इसका प्रबंध कर लिया है
बस आप किसी तरह पांडवों को वारणा वत भेज
दें दुर्योधन ने वारणा वत में पांडवों के
निवास के लिए पुचन नामक शिल्पी से एक भवन
का निर्माण करवाया था जो कि लाख चर्बी
सूखी घास मूझ जैसे अत्यंत ज्वलनशील
पदार्थों से बना था दुर्योधन ने पांडवों
को उस भवन में जला डालने का षड्यंत्र रचा
था धृतराष्ट्र के कहने पर युधिष्ठिर अपनी
माता तथा भाइयों के साथ वारणा वत जाने के
लिए निकल पड़े दुर्योधन के षड्यंत्र के
विषय में विदुर को पता चल गया वे वारणा वत
जाते हुए पांडवों से मार्ग में मिले तथा
उनसे बोले दुर्योधन ने तुम लोगों के रहने
के लिए पारणा वत नगर में एक ज्वलनशील
पदार्थों से एक भवन बनवाया है जो आग लगते
ही भड़क उठेगा इसलिए तुम लोग भवन के अंदर
से वन तक पहुंचने के लिए एक सुरंग अवश्य
बनवा लेना जिससे कि आग लगने पर तुम लोग
अपनी रक्षा कर सको मैं सुरंग बनाने वाला
कारीगर चुपके से तुम लोगों के पास भेज
दूंगा तुम लोग उस लाक्षा गृह में अत्यंत
सावधानी के साथ रहना वारणा वत में
युधिष्ठिर ने अपने चाचा विदुर के भेजे गए
कारीगर की सहायता से गुप्त सुरंग बनवा
लिया पांडव नित्य आखेट के लिए वन जाने के
बहाने अपने छिपने के लिए स्थान की खोज
करने लगे कुछ दिन इसी तरह बिताने के बाद
एक दिन यदि शिर ने भीमसेन से कहा भीम अब
दुष्ट पुरो चन को इसी लाक्षा गृह में
जलाकर हमें भाग निकलना चाहिए भीम ने उसी
रात्रि पुचन को किसी बहाने बुलवाया और उसे
उस भवन के एक कक्ष में बंदी बना दिया उसके
पश्चात भवन में आग लगा दिया और अपनी माता
कुंती एवं भाइयों के साथ सुरंग के रास्ते
वन में भाग निकले लाक्षा गृह के भस्म होने
का समाचार जब हस्तिना पहुंचा तो पांडवों
को मरा समझकर वहां की प्रजा अत्यंत दुखी
हुई दुर्योधन और धृतराष्ट्र सहित सभी
कौरवों ने भी शोक मनाने का दिखावा किया और
अंत में उन्होंने पांडवों की अंत्येष्टि
करवा दी लाक्षागृह से बच निकलने के पश्चात
पांडव वारणा वत के घने जंगल के अंदर चले
गए और भेष बदलकर रहने
लगे कौरव और पांडवों के बीच जब राज्य
बंटवारे को लेकर कलह चली तो मामा शकुनी की
अनुशंसा पर धृतराष्ट्र ने खांडव प्रस्थ
नामक एक जंगल को देकर पांडवों को कुछ समय
तक के लिए शांत कर दिया पांडवों के समक्ष
अब उस जंगल को एक नगर बनाने की चुनौती थी
यमुना नदी के किनारे एक बीहड़ वन था जिसका
नाम खांडव वन था पहले इस जंगल में एक नगर
हुआ करता था फिर वह नगर नष्ट हो गया और
उसके खंडहर ही बचे थे जिसे उन्होंने अपने
अथक प्रयासों से इंद्रप्रस्थ नामक सुंदर
नगरी में परिवर्तित कर दिया जो वर्तमान
दिल्ली है शीघ्र ही वहां की भव्यता की
चर्चाएं दूर-दूर तक होने लगी युधिष्ठिर
द्वारा किए गए राजसूय यज्ञ के अवसर पर
दुर्योधन को भी उस भव्य नगरी में जाने का
अवसर मिला वह राज महल की भव्यता देख रहा
था कि एक स्थान पर उसने पानी की तल वाली
सजावट को ठोस भूमि समझ लिया और पानी में
गिर गया द्रौपदी उसे देखकर हंसने लगी इसे
दुर्योधन ने अपना अपमान समझा और वह
हस्तिनापुर लौट आया अपने भांजे की यह
मानसिक स्थिति भाप कर शकुनी के मन में
पांडवों का राजपाट छीनने का कुटिल विचार
आया हस्तिनापुर लौटते समय शकुनी ने
दुर्योधन से कहा भांजे इंद्रप्रस्थ के सभा
भवन में तुम्हारा जो अपमान हुआ है उससे
मुझे अत्यंत दुख हुआ है तुम यदि अपने इस
अपमान का प्रतिशोध लेना चाहते हो तो अपने
पिता धृतराष्ट्र से अनुमति लेकर युधिष्ठिर
को द्यूत क्रीड़ा के लिए आमंत्रित कर लो
युधिष्ठिर द्यूत क्रीड़ा का प्रेमी है वह
तुम्हारे निमंत्रण पर वह अवश्य ही आएगा और
तुम तो जानते ही हो कि पासे के खेल में
मुझ पर विजय पाने वाला त्रिलोक में भी कोई
नहीं है पासे के दांव में हम पांडवों का
सब कुछ जीतकर उन्हें पुनः दरिद्र बना
देंगे हस्तिनापुर पहुंचकर दुर्योधन सीधे
अपने पिता धृतराष्ट्र के पास गया और
उन्हें अपने अपमान के विषय में विस्तार
पूर्वक बताकर
अपनी तथा मामा शकुनी की योजना के विषय में
भी बताया और युधिष्ठिर को द्यूत क्रीड़ा
के लिए आम मत्रित करने की अनुमति मांगी
थोड़ा बहुत
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आनाककंपोथिल
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के साथ द्यूत क्रीड़ा का प्रस्ताव रखा
जिसे युधिष्ठिर ने स्वीकार कर लिया पासे
का खेल आरंभ हुआ दुर्योधन की ओर से मामा
शकुनी पासे फेंकने लगे युधिष्ठिर जो कुछ
भी दांव पर लगाते थे उसे हार जाते थे अपना
समस्त राज्य तक को हार जाने के बाद
युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को भी दांव पर
लगा दिया और शकुनी धूर्तता करके इस दांव
को भी जीत गया यह देखकर भीष्म द्रोण विदुर
आदि ने इस जुए को बंद कराने का प्रयास
किया किंतु असफल रहे अब युधिष्ठिर ने
स्वयं अपने आप को दांव पर लगा दिया और
शकुनी की धूर्तता से फिर हार गए राजपाट
तथा भाइयों सहित स्वयं को भी हार जाने पर
युधिष्ठिर कांति हीन होकर उठने लगे तो
कुनी ने कहा युधिष्ठिर अभी भी तुम अपना सब
कुछ वापस जीत सकते हो अभी द्रौपदी
तुम्हारे पास दांव में लगाने के लिए शेष
है यदि तुम द्रौपदी को दाव में लगाकर जीत
गए तुम्हारा हारा हुआ सब कुछ तुम्हें लौटा
दिया जाएगा सभी तरह से निराश युधिष्ठिर ने
अब द्रौपदी को भी दाव में लगा दिया और
हमेशा की तरह हार गए यह बहुत कम लोगों को
मालूम होगा कि शकुनी के पास जुआ खेलने के
लिए जो पासे होते थे वह उसके मृत पिता के
रीढ़ की हड्डी के थे अपने पिता की मृत्यु
के पश्चात शकुनी ने उनकी कुछ हड्डियां
अपने पास रख ली थी शकुनी जुआ खेलने में
पारंगत था और उसने कौरवों में भी जुए के
प्रति मोह जगा दिया था अपने इस विजय को
देखकर दुर्योधन उन्मत हो उठा और विदुर से
बोला द्रौपदी अब हमारी दासी है आप उसे
तत्काल यहां ले आइए नीच दुर्योधन के वचन
सुनकर विदुर तिल मिलाकर बोले दुष्ट
धर्मराज युधिष्ठिर की पत्नी दासी बने ऐसा
कभी संभव नहीं हो सकता ऐसा प्रतीत होता है
कि तेरा काल निकट है इसीलिए तेरे मुख से
ऐसे वचन निकल रहे हैं परंतु दुष्ट
दुर्योधन ने विदुर की बातों की ओर कुछ भी
ध्यान नहीं दिया और द्रौपदी को सभा में
लाने के लिए अपने एक सेवक को भेजा वह सेवक
द्रौपदी के महल में जाकर बोला महाराणी
धर्मराज युधिष्ठिर कौरवों से जुआ खेलते
हुए सब कुछ हार गए हैं वे अपने भाइयों को
भी आपके सहित हार चुके हैं इस कारण
दुर्योधन ने तत्काल आपको सभा भवन में
बुलवाया है द्रौपदी ने कहा सेवक तुम जाकर
सभा भवन में उपस्थित गुरुजनों से पूछो कि
ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए सेवक
ने लौटकर सभा में द्रौपदी के प्रश्न को रख
दिया उस प्रश्न को सुनकर भीष्म द्रोण आदि
वृद्ध एवं गुरुजन सिर झुकाए मौन बैठे रहे
यह देखकर दुर्योधन ने दुशासन को आज्ञा दी
दुशासन तुम जाकर द्रौपदी को यहां ले आओ
दुशासन द्रौपदी के पास पहुंचा और बोला
द्रौपदी तुम्हें हमारे महाराज दुर्योधन ने
जुए में जीत लिया है मैं उनकी आज्ञा से
तुम्हें बुलाने आया हूं यह सुनकर द्रौपदी
ने धीरे से कहा दुशासन मैं रजस्वला हूं
सभा में जाने योग्य नहीं हूं क्योंकि इस
समय मेरे शरीर पर एक ही वस्त्र है दुशासन
बोला तुम रजस्वला हो या वस्त्रहीन मुझे
इससे कोई प्रयोजन नहीं है तुम्हें महाराज
दुर्योधन की आज्ञा का पालन करना ही होगा
उसके वचनों को सुनकर द्रौपदी स्वयं को
बचाने के लिए गांधारी के महल की ओर भागने
लगी किंतु दुशासन ने झपट कर उसके घुंघराले
केशों को पकड़ लिया और सभा भवन की ओर घसीट
लगा सभा भवन तक पहुंचते पहुंचते द्रौपदी
के सारे केश बिखर गए और उसके आधे शरीर से
वस्त्र भी हट गए अपनी यह दुर्दशा देखकर
द्रौपदी ने क्रोध में भरकर उच्च स्वरों
में कहा रे दुष्ट सभा में बैठे हुए इन
प्रतिष्ठित गुरुजनों की लज्जा तो कर एक
अबला नारी के ऊपर यह अत्याचार करते हुए
तुझे तनिक भी लज्जा नहीं आती धिक्कार है
तुझ पर और तेरे भरत वंश पर यह सब सुनकर भी
दुर्योधन ने द्रौपदी को दासी कहकर संबोधित
किया द्रौपदी बोली क्या वयोवृद्ध भीष्म
द्रोण धृतराष्ट्र विदुर अत्याचार को देख
नहीं रहे हैं कहां है मेरे बलवान पति उनके
समक्ष एक गीदड़ मुझे अपमानित कर रहा है
द्रौपदी के वचनों से पांडवों को अत्यंत
क्लेश हुआ किंतु वे मौन भाव से सिर नीचा
किए हुए बैठे रहे द्रौपदी फिर बोली
सभासदों मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि
धर्मराज को मुझे दांव पर लगाने का क्या
अधिकार था द्रौपदी की बात सुनकर विकर्ण
उठकर कहने लगा देवी द्रौपदी का कथन सत्य
है युधिष्ठिर को अपने भाई और स्वयं के हार
जाने के पश्चात द्रौपदी को दांव पर लगाने
का कोई अधिकार नहीं था क्योंकि वह पांचों
भाई की पत्नी है अकेले युधिष्ठिर की नहीं
क्योंकि युधिष्ठिर ने शकुनी के उकसाने पर
द्रौपदी को दांव पर लगाया था स्वेच्छा से
नहीं कौरवों को द्रौपदी को दासी कहने का
कोई अधिकार नहीं है विकर्ण के नीति युक्त
वचनों को सुनकर दुर्योधन के परम मित्र
कर्ण ने कहा विकर्ण तुम अभी कल के बालक हो
यहां उपस्थित भीष्म द्रोण विदुर
धृतराष्ट्र जैसे गुरुजन भी कुछ नहीं कह
पाए क्योंकि उन्हें ज्ञात है कि द्रौपदी
को हमने दांव में जीता है क्या तुम इन
सबसे भी अधिक ज्ञानी हो स्मरण रखो कि
गुरुजन के समक्ष तुम्हें कुछ भी कहने का
अधिकार नहीं है कर्ण की बातों से उत्साहित
होकर दुर्योधन ने दुशासन से कहा दुशासन
तुम द्रौपदी के वस्त्र उतार कर उसे
निर्वचन करो इतना सुनते ही दुशासन ने
द्रौपदी की साड़ी को खींचना आरंभ कर दिया
द्रौपदी अपनी पूरी शक्ति से अपनी
[संगीत]
साढ़गुरु वाला कोई नहीं है धिक्कार है आप
लोगों के कुल और आत्म बल को मेरे पति जो
मेरी इस दुर्दशा को देखकर भी चुप हैं
उन्हें भी धिक्कार है द्रौपदी की दुर्दशा
देखकर विदुर से रहा ना गया वे बोल उठे
दादा भीष्म एक निरी हला पर इस तरह
अत्याचार हो रहा है क्या हुआ आपके तपोबल
को इस समय दुरात्मा धृतराष्ट्र भी चुप है
वह जानता नहीं कि इस अबला पर होने वाला
अत्याचार उसके कुल का नाश कर देगा एक सीता
के अपमान से रावण का समस्त कुल नष्ट हो
गया था विदुर ने जब देखा कि उनके नीति
युक्त वचनों का किसी पर भी कोई प्रभाव
नहीं पड़ रहा है तो वे सबको धिक्कार हुए
वहां से उठकर चले गए दुशासन द्रौपदी के
वस्त्र को खींचने के अपने प्रयास में लगा
ही हुआ था द्रौपदी ने जब वहां उपस्थित
सभासदों को मौन देखा तो वह द्वारिका वासी
श्री कृष्ण को टेरती हुई बोली हे गोविंद
हे मुरारे हे कृष्ण मुझे इस संसार में अब
तुम्हारे अतिरिक्त और कोई मेरी लाज बचाने
वाला दृष्टिगत नहीं हो रहा है अब तुम ही
इस कृष्णा की लाज रखो श्री कृष्ण ने
द्रौपदी की पुकार सुन ली वे समस्त कार्य
त्याग कर तत्काल अदृश्य रूप में वहां
पधारे और आकाश में स्थिर होकर द्रौपदी की
साड़ी को बढ़ाने लगे दुशासन द्रौपदी की
साड़ी को खींचते जाता था और साड़ी थी कि
समाप्त होने का नाम ही नहीं लेती थी साड़ी
को खींचते खींचते दुशासन शिथिल होकर पसीना
पसीना हो गया किंतु अपने कार्य में सफल ना
हो सका अंत में लज्जित होकर चुपचाप बैठ
गया अब साढ़े उस पर्वत के समान ऊंचे ढेर
को देखकर वहां बैठे समस्त सभाजी के पाति
व्रत की मुक्त कंठ से प्रशंसा करने लगे और
दुशासन को धिक्कार लगे द्रौपदी के इस
अपमान को देखकर भीमसेन का सारा शरीर क्रोध
से जला जा रहा था उन्होंने घोषणा की जिस
दुष्ट के हाथों ने द्रौपदी के केश खींचे
हैं यदि मैं उन हाथों को अपनी गदा से नष्ट
ना कर दूं तो मुझे सद्गति ही ना मिले यदि
मैं उसकी छाती को चीर कर उसका रक्त पान न
कर सकूं तो मैं कोटि जन्मों तक नरक की
वेदना भुगता रहूं मैं अपने भ्राता धर्मराज
युधिष्ठिर के वश में हूं अन्यथा इस समस्त
कौरवों को मच्छर की भांति मसलकर नष्ट कर
दूं यदि आज मैं स्वामी होता तो द्रौपदी को
स्पर्श करने वाले को तत्काल यमलोक पहुंचा
देता और इस प्रकार द्रौपदी का अपमान करके
दुर्योधन ने अपना प्रतिशोध ले लिया और उसी
दिन महाभारत के युद्ध की नींव पड़ी
कुरुक्षेत्र के युद्ध में शकुनी का वध
सहदेव के द्वारा 18वें दिन के युद्ध में
किया गया उसके सभी भाइयों का वध रवन
अर्जुन और भीम के द्वारा किया गया
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